बिछड़ जाने का तुम्हें दुख लगे तो, क़ैद में ही रखना
दरिया -ए-रेत को बहना में वक्त नहीं लगता
बेहतर तो ये है कि नजरों की क़ैद में ही रहें हम खुद
हम वो वक्फा हैं जिसे गुजरने में लम्हा भी काफी है
चलो माना बिछड़ भी गए तो क्या होगा
मैं इधर-तुम उधर, बीच में फासला होगा
हम कह देंगे फासलों को भी,एक दौर है तू
जो गुजरा वो हमारा था, जो आएगा वो भी हमारा होगा
माना कि ऐब हैं तुम्हारे अंदर
मगर कोई कमी थोड़ी है
ये पानी है जनाब, शराब थोड़ी है
कर लो अभी जो करना है
मोहतरमा सुधरने की ये कोई उम्र थोड़ी है
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अभी अधेंरा है उधर, उजाले में मिलेंगे हम
बात तो जिल में है, वहीं रहने दो
बस इशारों - इशारों में लड़ेंगे हम