Thursday, November 30, 2023

इश्क किया चीज़ है ख़बर न थी हमको


इश्क किया चीज़ है ख़बर न थी हमको
अब ग़ालिब तेरे शहर ने जीना सिख़ा दिया

मैंने तो अकेले ही की थी मोहब्बत

खुदा बख्शे गुनाह उसके सारे।।
मुझे भी उसने इश्क़ का शाहिद बना दिया।।
मैंने तो अकेले ही की थी मोहब्बत।।
उसने भी करके इसे इश्क़ बना दिया।।

ले ज़न्नत भी छोड़ दी मैंने तेरी ख़ातिर

ले ज़न्नत भी छोड़ दी मैंने तेरी ख़ातिर।।
बता कोन-कोन से इम्तिहान से गुज़रना है मुझे।।

कमसिन होती है ये जुबा, हर जुबा पर आएगी उर्दू


कमसिन होती है ये जुबा
हर जुबा पर आएगी उर्दू
जरुरी नही की सीखी जाए ये जुबा
इश्क किसी से कीजिए
हर शब्द मै जलख जाएगी उर्दू

हर गुनाह मै भी करता हु उसकी इबादत
की जहन्नुम से भी निकलते है खुदा बाले

गैर नहीं अपने आजमाए है हमने
गुलास्ता फूलो का चुभन काटो की है जिसमे

हम उम्र है तेरा काधा मेरे काधे सा
जलते हैं हम वतन भी मेरी चाहत से

Monday, June 1, 2020

क़त्ल करने का मुझे, इरादा हो तुम्हरा तो बता देना

क़त्ल करने का मुझे, इरादा हो तुम्हरा तो बता देना
अभी फुर्सत में बैठा हूं, तुम्हारा टाइम पास हो जाएगा

मैं नहीं कुछ ख़ास हूं, एक बूंद हूं बस पानी की
अभी बरसा हूं बस थोड़ा सा, तुम्हें मुस्कुराना हो तो बता देना 

Monday, April 13, 2020

आंखों को नींद ना आए, बेचेन हो जाए


आंखों को नींद ना आए, बेचेन हो जाए
ख्याल मिलने का भी दिल से ना जाए

गुजरगई वो बातें, वो बीते दिन की यादें
वफा से निभाई तूने बेवफाई की यादें

वो कौन वक्त था जो हमें मिला गया
उस मौड़ से गुजरा वो वक्त रूला गया 

तेरी बात, उदास रात की दास्तान सुनाएगी
ऐसे छोड़कर जाने वाले तेरी बहुत याद आएगी

जहां से आया था वो लौट रहा है वापस 
'मुस्तकीम' इस मोड़ पर ना आएगा वापस 

Saturday, March 14, 2020

बिछड़ जाने का तुम्हें दुख लगे तो, क़ैद में ही रखना

बिछड़ जाने का तुम्हें दुख लगे तो, क़ैद में ही रखना
दरिया -ए-रेत को बहना में वक्त नहीं लगता

बेहतर तो ये है कि नजरों की क़ैद में ही रहें हम खुद
हम वो वक्फा हैं जिसे गुजरने में लम्हा भी काफी है


चलो माना बिछड़ भी गए तो क्या होगा
मैं इधर-तुम उधर, बीच में फासला होगा

हम कह देंगे फासलों को भी,एक दौर है तू
जो गुजरा वो हमारा था, जो आएगा वो भी हमारा होगा


माना कि ऐब हैं तुम्हारे अंदर
मगर कोई कमी थोड़ी है

ये पानी है जनाब, शराब थोड़ी है
कर लो अभी जो करना है
मोहतरमा सुधरने की ये कोई उम्र थोड़ी है

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अभी अधेंरा है उधर, उजाले में मिलेंगे हम
बात तो जिल में है, वहीं रहने दो
बस इशारों - इशारों में लड़ेंगे हम

इश्क किया चीज़ है ख़बर न थी हमको

इश्क किया चीज़ है ख़बर न थी हमको अब ग़ालिब तेरे शहर ने जीना सिख़ा दिया