एक गीत की वो आवाज़ जो जब किसी हिन्दुस्तानी के कानो मैं पड़ती है तो उसे बड़ा सुकून देती है
भारतीय संगीत की दुनिया मैं बड़े ही अद्व के साथ लिया जाने वाला नाम पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी भारतीय संगीत-नभ के जगमगाते सदा क लिए डूवचूका है अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे.
सुर ताल को अपनी आवाज़ मैं बाँध केर गाने वाले पंडित जी अद्भुभूत तरीके से गाते थे अलवेला सन यो रे ,,और ठुमक ठुमक पग कुमत कुञ्ज ,चपल चरण हरी आये सादे पहनावे, रहन-सहन और स्वभाव वाले भीमसेन जी को अपने बारे में कहने में हमेशा संकोच रहा। यह मेरा सौभाग्य ही है पण्डित भीमसेन जोशी ने जहाँ एक ओर अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को समृद्ध किया, वहीँ दूसरी ओर अन्य घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में समाहित किया। उन्होंने राग कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की रचना भी की। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी, भजन और अभंग गायन में भी महारत हासिल थी। पंडित जी ने कई फिल्मो मैं अपनी अनमोल गायन प्रतिभा का योगदान दिया है - 'ठुमक ठुमक पग कुमत कुञ्ज मग, चपल चरण हरि आये ....'I इस फिल्म के संगीतकार जयदेव थे. फिल्म के इस गीत को 1985 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए वर्ष का सर्वश्रेष्ठ गीत (पुरुष स्वर) के रूप में पुरस्कृत किया गया थाI पंडित जी भले ही आज हमारे साथ नहीं हैं लेकिन उनकी मधुर स्वर्णिम आवाज़ हमेशा उनको हमारी आँखों मैं सदा के लिए जिन्दा रखेगी आज पंडित भीमसेन जोशी हमारे बीच मौजूद नहीं। लेकिन उनकी मधुर इस संसार को उनकी हमेसा याद दिलाती रहेगी